Wednesday 6 August 2014

एक कविता मूल्यहीन

स्वाभिमान के छिलके,
नैतिकता की रद्दी,
सड़ी हुई आत्मा,
जले हुए सपने,
गँधते हुए गीत,
घुन लगी कविताएँ,
जूठन में बची थोड़ी सी सच्चाई,
हँसी जिस पर जाले जमे हुए हैं,
एक चूहे की लाश, और मेरा साहस,
सब बाहर फेंक आया हूँ मैं।
पुनश्चः - लोहा 7 रु./किलो है।